कमोडिटी बाजारः खाने के तेलों में उबाल, क्या हो रणनीति

त्योहार सामने हैं और खाने तेलों की महंगाई बढ़ने लगी है। पिछले महीने इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ने के बाद से खाने के तेलों का दाम करीब 10 फीसदी बढ़ गया है। देश में सबसे ज्यादा खपत वाले पाम तेल का दाम 6 महीने की ऊंचाई पर है। वहीं सोयाबीन में दबाव के बावजूद सोया तेल भी 6 महीने का ऊपरी स्तर छू चुका है। ऐसे में अक्टूबर से शुरू होने वाले नए मार्केटिंग सीजन में खाने के तेलों की चाल कैसी रहेगी।

भारत में खाने के तेलों का 70 फीसदी इंपोर्ट है और सबसे ज्यादा इंपोर्ट पाम तेल का होता है। उत्तर भारत में तेल की मांग सबसे ज्यादा होती है। उत्तर भारत में पाम तेल 36 फीसदी मांग है। वहीं दक्षिण भारत में पाम तेल की 63 फीसदी मांग है जबकि सूरजमुखी की 23 फीसदी और सोया तेल की 7 फीसदी मांग है।

पश्चिम भारत में पाम तेल की 37 फीसदी, सोया तेल की 32 फीसदी और सूरजमुखी की 7 फीसदी मांग है। सोया और पाम तेल 6 महीने की ऊंचाई पर है। ग्लोबल मार्केट में बढ़त से भी खाने के तेलों की कीमतों को सपोर्ट मिला है। इस साल 143 लाख टन तेल इंपोर्ट की उम्मीद है। भारत में 70 फीसदी खाने के तेल इंपोर्ट होते हैं।

मौसम का साथ और किसानों को बेहतर दाम नहीं मिलने से भारत में तिलहन की पैदावार करीब 10 फीसदी कम रहेगी। ऐसे में अगले साल खाने के तेल की कीमतों में आग लग सकती है।

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