नोटबंदी : खेती से लेकर वस्त्र उद्योग तक लड़खड़ाए

मुंबई, भिवंडी और अहमदाबाद। भिवंडी एक समय एशिया का मानचेस्टर कहा जाता था, लेकिन बांग्लादेश और वियतनाम से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ चुका है। भिवंडी में देश के कुल करघे का छठा हिस्सा है और यहां 65 लाख से ज्यादा करघे हैं। करघा मशीन से ही सूत से कपड़ों का निर्माण होता है। 

 

मुंबई से करीब 30 किलोमीटर उत्तर स्थित 15 लाख की घनी आबादी वाला शहर है। एक जमाना था, जब यह देश की कपास अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ी थी, जो अकेले 2.5 करोड़ कामगारों को रोजगार प्रदान करता था। यह कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता था। 

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भारतीय वस्त्र उद्योग पहले से ही निर्यात में कमी, कम उत्पादकता और बढ़ती कीमतों की चुनौतियों का सामना कर रहा है। लेकिन 8 नवंबर को लागू की गई नोटबंदी के बाद भिवंडी और अधिक अशक्त हो गया है। असद फारुखी (65) भिवंडी में पिछले 30 सालों से 100 से ज्यादा करघा चला रहे हैं। उनका कहना है, "नोटबंदी ने हमको पांच साल पीछे फेंक दिया।"

 

 इस उद्योग में बेटा अक्सर पिता का कारोबार संभालता है। असद के बेटे आफताब (34) याद करते हैं कि किस प्रकार वे बचपन में समृद्धि से रहते थे और एक खेप से 20,000 रुपये की कमाई बहुत सामान्य बात थी।  आफताब का कहना है"पिछले महीने हमने अपने सारे करघे के कारोबार से 17,000 रुपये की कमाई की।" वे कहते हैं कि 1996-97 में कमाए गए 20,000 रुपये की कीमत औसत महंगाई 6.5 फीसदी सालाना को ध्यान में रखते हुए आज के जमाने में 70,000 रुपये के बराबर है। 

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